विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन करने के लिये एक अधिनियम, जो समाज के कमजोर वर्गों को निःशुल्क और सक्षम विधिक सेवा प्रदान करते हुए और यह सुनिश्चित करते हुए
विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन करने के लिये एक अधिनियम, जो समाज के कमजोर वर्गों को निःशुल्क और सक्षम विधिक सेवा प्रदान करते हुए और यह सुनिश्चित करते हुए कि न्याय सुरक्षित करने के लिए अवसर, आर्थिक या अन्य अयोग्यता के आधार पर किसी नागरिक को अस्वीकृत नहीं करता, और यह सुनिश्चित करने के लिए लोक आदलतों का गठन कि विधिक प्रणाली का कार्य समान अवसर के आधार पर न्याय की वृद्धि करना है।
भारत गणराज्य के अड़तीसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप से यह अधिनियमित हो :-
अध्याय 1 - प्रारम्भिक
1. संक्षिप्त नाम , विस्तार और आरम्भ होना .
- इस अधिनियम को विधिक सेवा प्राधिकार अधिनियम , 1987 पुकारा जा सकेगा।
- यह जम्मू और कश्मीर राज्य के अलावा सम्पूर्ण भारत पर प्रवृत होगा।
- यह उस तारीख को प्रवृत होगा जो केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा नियत करें और इस अधिनियम के भिन्न - भिन्न उपबंधों के लिए और भिन्न - भिन्न राज्यों के लिये भिन्न - भिन्न तारीखें नियत की जा सकेगी और ऐसे किसी उपबंध से अधिनियम के प्रारम्भ के प्रति निर्देश का किसी राज्य के सम्बन्ध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस राज्य में उस उपबंध के प्रवृत होने के प्रति निर्देश है।
2. परिभाषाएँ :-
(1) इस अधिनियम में , जब तक कि सन्दर्भ में अन्यथा अपेक्षित न हो,
(i) " मामले में न्यायालय के समक्ष वाद या कोई कार्यवाही शामिल है;
(ii) " केन्द्रीय प्राधिकरण " से धारा 3 के अन्तर्गत गठित राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण अभिप्रेत है;
(iii) " न्यायालय " से सिविल , दाण्डिक या राजस्व न्यायालय अभिप्रेत है और न्यायिक या अर्द्ध न्यायिक कार्यों को प्रयुक्त करने के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अन्तर्गत गठित किसी अधिकरण या किसी अन्य प्राधिकरण को सम्मिलित किया जाता है ; "
(iv) " जिला प्राधिकरण " से धारा 9 के अन्तर्गत गठित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अभिप्रेत है;
(v) उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति " से धारा 8 - क के अन्तर्गत गठित उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति अभिप्रेत है ; "
(vi) विधिक सेवा में किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकरण या अधिकरण के समक्ष किसी मामले या अन्य विधिक कार्यवाही को करने में किसी सेवा को प्रदान करना और किसी विधिक मामले पर सलाह प्रदान करना सम्मिलित है;
(vii) "लोक अदालत" से अध्याय 6 के अन्तर्गत बनाई लोक अदालत अभिप्रेत है;
(viii) "अधिसूचना" से राज - पत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है;
(ix) "निर्धारित" से इस अधिनियम के अन्तर्गत बनाये गये नियमों द्वारा निर्धारित अभिप्रेत है;
(x) "विनियमनों" से इस अधिनियम के अन्तर्गत बनाये गये विनियम अभिप्रेत है;
(xi) “योजना" से इस अधिनियम के किन्हीं प्रावधानों को प्रभाव देने के प्रयोजन के लिए केन्द्रीय प्राधिकरण , राज्य प्राधिकरण या जिला प्राधिकरण द्वारा बनाई गई कोई योजना अभिप्रेत है;
(xii) “राज्य प्राधिकरण" से धारा 6 के अन्तर्गत गठित राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण अभिप्रेत है;
(xiii) "राज्य सरकार" में संविधान के अनुच्छेद 239 के अन्तर्गत अध्यक्ष द्वारा नियुक्त संघ क्षेत्र का प्रशासक सम्मिलित है ; " उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति " से धारा 3 क के अन्तर्गत गठित उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति अभिप्रेत है ;
(xiv) "तालुक विधिक सेवा समिति से धारा 11 - क के अन्तर्गत गठित तालुक विधिक सेवा समिति अभिप्रेत है;
(2) किसी अन्य अधिनियमिति के लिए इस अधिनियम में निर्देश या उसके किसी प्रावधान की व्याख्या एक क्षेत्र के सम्बन्ध में , जिसमें वह अधिनियमित या प्रावधान प्रवृत्त नहीं हो, तत्स्थायी विधि के रूप में या उस क्षेत्र में प्रवृत्त तत्स्थायी विधि से सम्बन्धित प्रावधानों, यदि कोई हो, के रूप में की जायेगी।
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